मौत के वक़्त की कैफियत-Maut Ke Waqt Kya Hoga

 मौत के वक़्त की कैफियत

जब रूह निकलती है तो इंसान का मुंह खुल जाता है होंठ किसी भी कीमत पर आपस में चिपके हुए नही रह सकते... रूह पैर के अंगूठे से खिंचती हुई ऊपर की तरफ़ आती है जब फेफड़ो और दिल तक रूह खींच ली जाती है तो इंसान की सांस एक तरफ़ा बाहर की तरफ़ ही चलने लगती है ये वो वक़्त होता है जब चन्द सेकेंडो में इंसान शैतान और फरिश्तों को दुनिया में अपने सामने देखता है... एक तरफ़ शैतान उसके कान के ज़रिये कुछ मशवरे सुझाता है तो दूसरी तरफ़ उसकी जुबान उसके अमल के मुताबिक़ कुछ लफ्ज़ अदा करना चाहती है अगर इंसान नेक होता है तो उसका दिमाग उसकी ज़ुबान को कलमा ए शहादत का निर्देश देता है और अगर इंसान काफ़िर मुशरिक बद्दीन या दुनिया परस्त होता है तो उसका दिमाग कन्फ्यूज़न और एक अजीब हैबत का शिकार होकर शैतान के मशवरे की पैरवी ही करता है और इंतेहाई मुश्किल से कुछ लफ्ज़ ज़ुबान से अदा करने की भरसक कोशिश करता है...।

ये सब इतनी तेज़ी से होता है की दिमाग़ को दुनिया की फ़ुज़ूल बातों को सोचने का मौका ही नहीं मिलता...। इंसान की रूह निकलते हुए एक ज़बरदस्त तकलीफ़ ज़हन महसूस करता है लेकिन तड़प इसलिए नहीं पाता क्योंकि दिमाग़ को छोड़कर बाकी ज़िस्म की रूह उसके हलक में इकट्ठी हो जाती है और जिस्म एक गोश्त के बेजान लोथड़े की तरह पड़ा हुआ होता है जिसमें कोई हरकत की गुंजाइश बाकी ही नहीं रहती...।

आखिर में दिमाग की रूह भी खींच ली जाती है आँखें रूह को ले जाते हुए देखती हैं इसलिए आँखों की पुतलियां ऊपर चढ़ जाती हैं या जिस सिम्त फ़रिश्ता रूह कब्ज़ करके जाता है उस तरफ़ हो जाती हैं...
इसके बाद इंसान की ज़िन्दगी का वो सफ़र शुरू होता है जिसमें रूह तकलीफ़ों के तहखानों से लेकर आराम के महलों की आहट महसूस करने लगती है जैसा की उससे वादा किया गया है... जो दुनिया से गया वो वापस कभी नहीं लौटा... सिर्फ इसलिए क्योंकि उसकी रूह आलम ए बरज़ख में उस घड़ी का इंतज़ार कर रही होती है जिसमें उसे उसका ठिकाना दे दिया जाएगा... इस दुनिया में महसूस होने वाली तवील मुद्दत उन रूहों के लिये चन्द सेकेंडो से ज़्यादा नहीं होगी भले ही कोई आज से करोड़ों साल पहले ही क्यों न मर चुका हो...।

मोमिन की रूह इस तरह खींच ली जाती है जैसे आटे में से बाल खींच लिया जाता है... और गुनाहगार की रूह कांटेदार पेड़ पर पड़े सूती कपड़े को खींचने की तरह खींची जाती है...।

अल्लाह तआला हम सबको मौत के वक़्त कलमा नसीब फरमाकर आसानी के सात रूह कब्ज़ फ़रमा और नबी ए पाक सल्‍लल्‍लाहु अलैही व-सल्‍लम का दीदार नसीब फरमा...।

आमीन
Share kare

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Naat sharif by sajjad nizami

या हुसैन आप की ठोकर से नीकलता पानी

इमाम हुसैन की शान. Imam Husain Ki Shaan