मरना ज़रूर है
डरता हुँ मौत से मगर मरना ज़रूरी है । लरज़ता हुँ कफन से मगर पहन्ना ज़रूरी है । हो जाता हुँ गमग़ीन जनाज़े को देख कर । लेकिन मेरा जनाज़ा भी उठना ज़रूरी है । होती बड़ी कपकपी कबरों को देख कर पर मुद्दतो इस कबर में रहना ज़रूरी है । मौत के आगोश में जिस दिन हमे सोना होगा । ना कोइ तकिया ना कोइ बिछोना होगा । साथ होंगे हमारे अमाल और कब्रिस्तान का छोटा सा कोना होगा । मत करना कभी गुरूर अपने आप पर ऐ इन्सान । अल्लाह ने तेरे जैसे ना जाने कितने मिट्टी से बना कर । मिट्टी में मिला दिए । अल्लाह हर गुनाहों की माफी माँगने पर माफ कर देता है सिवाय गीबत और चुगली पर अल्लाह तब तक माफ नही फरमाता जब तक इन्सान खुद उस से माफी ना माँगे जिस की गीबत की है । ये एक ऐसा गुनाह है जिसकी वजह से लोग काट काट कर जहन्नम में फैंके जाऐगें प्लीज़ :- मुझे माफ कर देना अगर जाने अनजाने में मुझ से आप की गीबत हो गयी हो और हो सके तो ये मैसिज़ सब को भेजो ये सोच कर की आप को माफी माँगने का मौका मिला प्लीज़ :- आज किसी को ये मैसिज़ ज़रूर करना आप को अन्दाजा भी नहीं होगा की आपकी वजह से कितने लोग अल्लाह से तौबा कर लेंग...